शिमला - कालका ट्रेक के लिए तैयार किये सेमी-विस्टाडोम कोच ट्रायल के लिए रवाना ...
- अंग्रेजों की 115 साल पुरानी ट्वाय ट्र्रेन के स्थान पर दौड़ेगी आधुनिक AC ट्रेन
- RCF वर्कशाप में आयोजित समारोह में GM ने किया अनावरण
- स्विजरलैंड में दौड़ने वाली ट्रेन को मात देंगे आरसीएफ में बने विश्वस्तरीय कोच
- दो-तीन माह में हेरिटेज ट्रैक पर दौड़ने लगेंगे कोच -- GM RCF
खबरनामा इंडिया बबलू। कपूरथला
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया की तर्ज पर पहली बार नैरोगेज (एनजी) कोच बनाकर जहां रेल कोच फैक्टरी कपूरथला ने अपनी कार्यकुशलता का साबुत दिया है, वहीं बिना किसी डिजाइन डाटा के स्विजरलैंड में सरपट दौड़ने वाली ट्रेन को मात देते विश्वस्तरीय माडर्न पैनारोमिक कोच बनाकर कीर्तिमान स्थापित किया है। यह शब्द RCF के GM अशेष अग्रवाल ने सोमवार शाम पैनारोमिक (सेमी-विस्टाडोम) के 4 कोच नार्दर्न रेलवे कालका को भेजने के लिए अनावरण करते हुए कहे है।
मुख्य अतिथि GM RCF ने कहा कि इन कोच को कालका-शिमला रूट पर दूसरे चरण के ऑसीलेशन ट्रायल के लिए RCF से भेजा जा रहा है। इनमें एक एसी एग्जीक्यूटिव चेयर कार, एक एसी चेयर कार, एक नॉन एसी चेयर कार और एक लगेज कार शामिल हैं। इन्हें ट्रायल के परिणाम के आधार पर सात डिब्बों के रैक के तौर पर कालका-शिमला रूट पर 25 किलोमीटर की स्पीड पर यात्रियों के लिए चलाया जाएगा।
GM ने बताया कि ट्रायल के दौरान इन कोच को लगातार 10 दिन तक कालका-शिमला हेरिटेज ट्रैक के बीच दौड़ाया जाएगा। ट्रायल 28 किलोमीटर की स्पीड से होगा, लेकिन कोच 25 की स्पीड से चलेंगे। क्योंकि एनजी कोच का ट्रैक भी अंग्रेजों के जमाने का पुराना है। इसलिए इसकी स्पीड पहले वाली ट्वाय ट्रेन जितनी ही रहेगी। हां, भविष्य में ट्रैक अपग्रेड होता है तो इसे हाई स्पीड पर दौड़ाने का जहां ट्रायल किया जा सकता हैं, वहीं इनकी सुविधाओं में इजाफा किया जाएगा।
GM ने यह भी बताया कि पहले उन्हें भारतीय रेलवे से 30 डिब्बों का आर्डर मिला था, लेकिन अब इन्हें 42 कर दिया गया है। चार भेजे जा रहे हैं और 26 का मैटीरियल आर्डर कर दिया गया है। शेष 12 के लिए भी जल्द मैटीरियल आर्डर कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि भारतीय रेल की ओर से RCF कपूरथला को अपनी आधुनिकीकरण की प्रतिष्ठित परियोजना सौंपी गई, लेकिन 1908 में पाकिस्तान की लाहौर स्थित मोगलपुरा वर्कशाप में डिजाइन की गई ट्वाय ट्रेन के लिए आरसीएफ के पास डिब्बों के विकास, जांच-परीक्षण के लिए नैरोगेज ट्रैक के मॉडलिंग हेतु कोई भी डाटा उपलब्ध नहीं था। फिर भी आरसीएफ ने अपनी उच्च कुशलता का बाखूबी इस्तेमाल करते हुए न केवल इसके डिजाइन के शैल जिग्स, लिफ्टिंग टैकल, स्टैटिक टेस्ट जिग्स, नैरोगेज लाइन, लोडिंग गेज सरीखे इंफ्रास्ट्रक्चर का इन-हाउस (आरसीएफ) निर्माण किया।
स्विजरलैंड की ट्रेन को टक्कर देते इन कोच की प्रति कोच लागत एक करोड़ रुपये आई है। उन्होंने बताया कि एसी एग्जीक्यूटिव 1.13 करोड़ तो लगेज कोच 90 लाख रुपये में बना है। इन चारों की औसतन कीमत निकाली जाए तो यह एक करोड़ रुपये बैठती है।















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