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महाराजा अग्रसेन जयंती पर विशेष ---- अग्रवाल समाज ने देश की आर्थिक मजबूती में दिया अहम योगदान ....

- भगवान अग्रसेन के भगवा ध्वज अहिंसा और सूर्य का प्रतीक  

खबरनामा इंडिया बबलू। कपूरथला     

महाराजा अग्रसेन अग्रवाल जाति के लोग जिनके वंशज है, एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक, समाजवाद के प्रणोता, युग पुरूष, तपस्वी, राम राज्य के समर्थक व महादानी माने जाते थे। भारत में अग्रवाल समाज देश के कुल इनकम टैक्स में एक बड़ा हिस्सा तकरीबन 24 प्रतिशत योगदान डालता है। यह विचार अग्रवाल सभा कपूरथला के प्रधान तिलकराज अग्रवाल ने महाराजा अग्रसेन की जयंती के उपलक्ष्य में कहे।   

अग्रवाल ने कहा कि देश भर में मौजूद गौशालाओं, समुदायिक भवन, धर्मशालाए काफी हद तक अग्रवाल समाज के सहयोग से चल रही है। उन्होंने कहा कि अग्रवाल समाज ने न केवल अपनी मेहनत के बलबूते पर देश को आर्थिक मजबूती दी है, बल्कि देश की आजादी में भी समाज का अहम योगदान रहा है। लड़ाई में समाज से जुड़े लाला लाजपतराय ने लाठी भी खाई और शहादत भी दी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अग्रवाल समाज से थे। जिन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधकर सदैव अहिंसा के मार्ग पर चलकर आजादी दिलाई थी।   

अग्रवाल समाज जनता व समाज की हमेशा सेवा करता है और हमेशा दान में विश्वास रखता है। समाज के लोग हर काम में हमेशा अग्रणी रहे है। उन्होंने कहा कि महाराजा अग्रसेन के दिखाए मार्ग पर आज भी समाज के लोग चल रहे है। उन्होंने महाराजा अग्रसेन जी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान अग्रसेन का जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में लगभग 5139 साल पहले हुआ था। वह सूर्यवंशी राजा थे। वह प्रतापनगर के महाराजा महिंदर के पोते थे और महाराजा वल्लभ और रानी भागमती देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। खान्डवपस्र्थ के राजा ययाति के वंशज थे और राजा शुरसेन के बड़े भाई थे जो बलराम और भगवान कृष्ण के दादा थे।   

राजकुमार अग्रसेन को नागवन्श राजा कुमुद की बेटी, राजकुमारी माधवी ने एक स्वयंवर में शुभ माला डालकर अपना पति स्वीकार किया। राज्य में दीर्घकालिन शांति सुनिश्चित करने हेतु भगवान अग्रसेन ने काशी में भगवान शिव की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान अग्रसेन को देवी महालक्ष्मी की प्रार्थना करने की सलाह दी। देवी महालक्ष्मी ने भगवान अग्रसेन को एक नये राज्य को स्थापित करने का आदेश दिया और हथियार छोड़कर अपने राज्य के लोगों की समृद्धि हेतु व्यापार की परंपरा अपना लेने को कहा। देवी ने आशीर्वाद दिया कि उनके  राज्य के सभी लोग और वंशज समृद्ध होंगे।   

भगवान अग्रसेन ने नए राज्य का स्थान चयन करने के लिए अपनी रानी के साथ पूरे भारत में भम्रण किया। एक क्षेत्र में उन्होंने कुछ बाघ शावकों को भेड़िया शावकों के साथ खेलते देखा। इसे वीर भूमि का शुभ संकेत मान कर उन्होंने उस स्थान पर नए राज्य की स्थापना की। महालक्ष्मी के आशीर्वाद से भगवान अग्रसेन ने महाभारत के युद्ध से 51 साल पहले अग्रोहा में एक बहुत समृद्ध और विकसित राज्य का निर्माण किया। भगवान अग्रसेन के राज्य का महाभारत में भी उल्लेख मिलता है। भगवान अग्रसेन ने राज्य को हिमालय, पंजाब, यमुना की तराई और मेवाड़ क्षेत्र तक बढ़ाया। भगवान अग्रसेन ने वानिक धर्म का पालन किया और उन्होंने यज्ञ में पशुओं को वध करने से इंकार किया। भगवान अग्रसेन के ज्येष्ठ पुत्र वीभु थे। उन्होंने 18 महायज्ञों का आयोजन किया। उसके बाद उन्होंने अपने 18 बच्चों के बीच अपने राज्य को विभाजित किया। अपने प्रत्येक बच्चों के गुरु  के नाम से 18 गोत्रों की स्थापना की। आज यह 18 गोत्र एक दूसरे से अलग है, फिर भी सभी गोत्र संयुक्त है और एक दूसरे से संबंधित हैं।   

अग्रवालों के अठारह गोत्र निम्न है जिसमें गर्ग, गोयल, गोयन, बंसल, कंसल, सिंघल, मंगल, जिंदल, तिंगल, ऐरण, धारण, मुधुकुल, बिंदल, मित्तल, तायल, भंदल, नागल, कुच्छल शामिल है। अग्रोहा राज्य की 18 राज्य इकाइयों थी। प्रत्येक राज्य की इकाई को एक गोत्र से अंकित किया गया था। उस विशेष राज्य इकाई के सभी निवासियों की उस गोत्र द्वारा पहचान की गई।   

भगवान अग्रसेन ने ऐलान किया कि वैवाहिक गठबंधन एक ही गोत्र में नहीं हो सकता है। यही कारण है कि गोयल गोत्र का एक लड़का गोयल गोत्र की एक लड़की से शादी नहीं कर सकते है, लेकिन अन्य 17 गोत्र में से किसी में भी शादी की जा सकती है। भगवान अग्रसेन के भगवा ध्वज अहिंसा और सूर्य का प्रतीक है। ध्वज के सामने से वी-आकार कटौती की गई है।   

सूर्य की 18 किरणो 18 गोत्र के प्रतिनिधित्व करती है। ध्वज में चांदी के रंग की एक ईंट और एक रूपए वैभव, भाईचारे व सहयोग का प्रतिनिधित्व करते है। भगवान अग्रसेन को अहिंसा, शांति के दूत, त्याग, करूणा, दान और समृद्धि के प्रतीक रूप में जाना जाता है। वह न केवल एक राजा थे बल्कि दलितां के उत्थान के एक नेता भी थे। उन्होंने अपने राज्य के सभी निवासियों की समृद्धि की कामना की। उन्होंने समाज में समानता सुनिश्चित करने के क्रम में एक अद्वितीय नियम बनाया। भगवान अग्रसेन के अनुसार अहिंसा का मतलब यह नहीं की हम दमन का प्रतिरोध भी नहीं करे। उन्होंने आत्मविश्वास और आत्मरक्षा को बढ़ावा दिया। उनके अनुसार आत्मसुरक्षा और राष्ट्रीय रक्षा केवल सैनिकों का नहीं अपितु प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।   



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