पवित्र बेईं की 25वीं वर्षगांठ ---
- गुरबाणी के आगमन स्थल बेईं से रिश्ता तोड़ने का संताप पंजाब ने भुगता है -- संत सीचेवाल
- पंजाब की नदियों और दरियाओं को प्रदूषित करने में पढ़ा-लिखा वर्ग जिम्मेदार
- बेईं की कारसेवा ने पंजाब में पर्यावरण चेतना पैदा करने में निभाई अहम भूमिका
खबरनामा इंडिया बबलू। कपूरथला
पर्यावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने पवित्र काली बेईं की 25वीं वर्षगांठ पर संगतों को बधाई देते हुए कहा कि उन्होंने एक असंभव कार्य को संभव बना दिखाया है। उन्होंने बेईं की 25वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर पंजाबवासियों को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि ढाई दशक पहले जिस पवित्र बेईं से लोग नाक-मुँह ढँककर गुजरते थे, आज उसी बेईं के सामने हर कोई श्रद्धा से सिर झुकाता है।
संत सीचेवाल ने कहा कि पंजाब के लोगों ने एक नदी को अपने हाथों से साफ करके देश को राह दिखाई है कि नदियों और दरियाओं की देखभाल कैसे करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरबाणी के आगमन स्थल पवित्र बेईं से रिश्ता तोड़ने का पंजाब ने बहुत बड़ा संताप भुगता है।
संत सीचेवाल ने 25 साल पहले जालंधर में हुई एक बैठक का ज़िक्र करते हुए कहा कि वहाँ एक वक्ता ने कहा था कि यदि बाबा नानक की बेईं को साफ नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें कोसेंगी। उन्होंने बताया कि जब जुलाई 2000 में सावन संगरांद के दिन बेईं की कार सेवा शुरू की गई, तो लोग तंज कसते थे कि यह पहाड़ जैसा काम भला हाथों से कैसे होगा।
उन्होंने कहा कि पंजाब की नदियों और दरियाओं में गंदगी पढ़े-लिखे लोगों ने डाली है। जबकि अनपढ़ लोग तो कानून से डरते रहते हैं। उन्होंने कहा कि जिन आई.ए.एस. और पी.सी.एस. अधिकारियों को इस पर रोक लगानी थी, वे अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने में पूरी तरह विफल रहे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि हम न तो बाबा नानक की मानते हैं, न संविधान की और न ही विज्ञान की।
संत सीचेवाल ने यह भी कहा कि बेईं की कार सेवा के शुरूआती वर्षों में उन्हें प्रशासन से भी लड़ना पड़ा, जो कि कानून के अनुसार कार्रवाई करने की बजाय, उल्टा गंदा पानी बहाने वालों की ही पैरवी करता रहा। उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों में पवित्र बेईं की कार सेवा के माध्यम से बुड्ढा दरिया, चिट्टी बेईं, काला संघिया ड्रेन और तुंगधाब ड्रेन के प्रदूषण के विरुद्ध जनचेतना पैदा हुई है।
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