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महापर्व दीपावली को लेकर असमंजस की स्थिति, पढ़े कब करे पूजन ...

 - कार्तिक अमावस्या 31 अक्तूबर को दोपहर 03:52 मिनट से प्रारंभ, 01 नवंबर को शाम 06:16 मिनट तक  

खबरनामा इंडिया बबलू। कपूरथला, पंजाब   

रौशनी और खुशियों का महापर्व दीपावली को लेकर इस वर्ष काफी असमंजस की स्थिति है। कुछ जगहों पर 31 अक्टूबर तो कहीं एक नवंबर को मनाई जा जाएगी। हिंदू धर्म में दीपावली सबसे प्रमुख त्योहारों में से है। वहीँ देशभर में दिवाली के पर्व पर घरों को विशेष रूप से रौशनी और दीयों से सजाया जाता है और अमावस्या की रात को धन, सुख और समृद्धि के देवी माता लक्ष्मी की पूजन-अर्चना होती है। धार्मिक मान्यता है कि दिवाली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर आती हैं और जिन घरों में अच्छी साफ-सफाई, सजावट और पूजा-पाठ होता है वहां पर निवास करती हैं।   


इस वर्ष दिवाली की तिथि को लेकर लोगो में काफी संशय की स्थिति है। वैसे तो धनतेरस से दिवाली का पर्व शुरू हो जाता है और भैया दूज पर समाप्त होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष दीपावली का त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। लेकिन इस बार कार्तिक अमावस्या तिथि दो दिन पड़ने के कारण दिवाली के त्योहार को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।  

बता दे कि शास्त्रों में दिवाली पर महालक्ष्मी का पूजन अमावस्या तिथि पर प्रदोष काल और स्थिर लग्न में सबसे सर्वोत्तम माना गया है। प्रदोष काल के अलाव महानिशीथ काल में लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता लक्ष्मी का प्राकट्य अमावस्या तिथि के संध्याकाल में हुआ था इस कारण से दिवाली का पर्व और लक्ष्मी पूजन प्रदोषकाल और रात्रिकाल निशीथ काल में होती है।   

वहीँ वैदिक पंचांग अनुसार इस वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि 31 तारीख को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से शुरू हो रही है और यह तिथि 01 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। माता लक्ष्मी अमावस्या तिथि में प्रदोष काल और निशिथ काल में भ्रमण करती हैं इसके कारण माता की पूजा प्रदोष काल और निशीथ काल में करने का विधान होता है। पंचांग के मुताबिक 31 अक्तूबर, गुरुवार के दिन पूरी रात्रि अमावस्या तिथि के साथ प्रदोष काल और निशीथ मूहूर्त काल भी है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार 31 अक्टूबर के दिन दीवाली का पर्व और लक्ष्मी पूजन करना सबसे अधिक फलदाई होगा, क्योंकि दिवाली का पर्व तभी मनाना उत्तम रहता है जब प्रदोष से लेकर निशिथा काल तक अमावस्या तिथि रहे। 

लेकिन कुछ ज्योतिषाचार्यों और पंडितों का तर्क है कि यदि दिवाली पर सूर्योदय के बाद तीन प्रहर तक कोई तिथि व्याप्त हो तो उदयकाल में तिथि होना माना जाता है और उसी काल में पूजा करना शास्त्र सम्मत है। ऐसे में 01 नवंबर को अमावस्या तीन प्रहर की है और प्रदोष व्यापिनी भी है। इस कारण से कुछ विद्वान दिवाली 01 नवंबर को मनाने की सलाह दे रहे हैं। 


कार्तिक अमावस्या तिथि प्रारंभ- 31 अक्तूबर को दोपहर 03:52 मिनट से। 
कार्तिक अमावस्या तिथि समाप्त- 01 नवंबर को शाम 06:16 मिनट तक। 


दिवाली पर प्रदोषकाल मुहूर्त ... 


दिवाली पर देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) और स्थिर लग्न में किया जाना चाहिए। अमूमन हर वर्ष दिवाली पर स्थिर लग्न जरूर मिलता है। दिवाली पर जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियां लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि यह चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। स्थिर लग्न के समय माता लक्ष्मी की पूजा करने से माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहरती हैं। प्रदोष काल का समय हर दिन सूर्यास्त होने से 2 घड़ी यानी 48 मिनट तक रहता है। भारतीय समय अनुसार 31 अक्तूबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट पर सूर्यास्त होगा। 31 अक्तूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से अमावस्या प्रारंभ होगी और प्रदोष काल अमावस्या तिथि पर रहेगी। ऐसे में 31 अक्तूबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट के बाद दिवाली लक्ष्मी पूजन आरंभ कर सकते है। 

वहीं दूसरी तरफ 01 नवंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट तक अमावस्या तिथि व्याप्त रहेगी और सूर्यास्त 05 बजकर 36 मिनट होगा। इस तरह से 01 नवंबर को भी प्रदोष काल और अमावस्या तिथि व्याप्त रहेगी। यानी 01 नवंबर को शाम 05 बजकर 36 मिनट से लेकर अमावस्या तिथि के समापन 06 बजकर 16 मिनट तक लक्ष्मी पूजन के लिए करीब 40 मिनट का ही शुभ मुहूर्त मिलेगा। इसके बाद प्रतिपदा लग जाएगी। 

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