एशिया की सबसे बड़ी रेल कोच फैक्ट्री में 'सामग्री की कमी ....
- प्रशासनिक अधिकारी मैटेरियल का समय पर इंतजाम करने में नाकाम, यह निजीकरण की गहरी साजिश --- अमरीक सिंह
- कर्मचारी आक्रोशित, फैक्ट्री का भविष्य लगा दांव पर
खबरनामा इंडिया बबलू। कपूरथला
भारतीय रेलवे के लिए जीवनरेखा समान समझी जाने वाली कपूरथला रेल कोच फैक्टरी अब एक गंभीर संकट के मुहाने पर खड़ी है। RCFEU ने आरसीएफ प्रशासन आरोप लगाया है कि फैक्ट्री "सामग्री की कमी" से जूझ रही है। जिस कारण उत्पादन अभूतपूर्व रूप से बाधित हो रहा है। यूनियन ने RCF प्रशासन की अदूरदर्शी नीतियों पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाए हैं और तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। अन्यथा कर्मचारियों का भविष्य और देश का गौरव खतरे में पड़ सकता है।
वही रेल कोच फैक्ट्री के CPRO अनुज कुमार ने बताया कि सामग्री की कमी संबंधित फर्मों द्वारा आपूर्ति में देरी के कारण है। सामग्री की शीघ्र आपूर्ति के लिए फर्मों से नियमित रूप से संपर्क किया जा रहा है और उन्होंने जल्द आपूर्ति का आश्वासन दिया है। इस बीच, जनशक्ति का उचित उपयोग सुनिश्चित करने और 3000 कोचों का लक्ष्य हासिल करने के लिए अन्य कोच वैरिएंट का निर्माण किया जा रहा है।
RCFEU द्वारा 28 जून 2025 को प्रधान मुख्य यांत्रिक इंजीनियर को भेजे गए पत्र (पत्र संख्या 13-आरसीएफईयू /2025/027) में फैक्ट्री की उस भयावह तस्वीर को उजागर किया गया है। जहाँ बुनियादी निर्माण सामग्री भी उपलब्ध नहीं है। यूनियन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कोच निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक घटकों, जैसे कि सभी कोचों में लगने वाली एयर ब्रेक की सिंगल फेरूल फिटिंग, L3T, L2T की सीलिंग, L3T, LSCN, L2T की सीट एवं बर्थ, और L3T के पार्टिशन पिलर की घोर कमी है। यह सिर्फ तकनीकी सूची नहीं, बल्कि उत्पादन प्रक्रिया की रीढ़ हैं, जिनके बिना एक भी कोच पूरा नहीं हो सकता।
आरसीएफ एम्पलाइज यूनियन के अध्यक्ष अमरीक सिंह ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा, "यह सिर्फ सामग्री की कमी नहीं, बल्कि आरसीएफ के गौरवशाली इतिहास और कर्मचारियों के पसीने की अनदेखी है। जब कोचों को अंतिम रूप देने के लिए यह बुनियादी वस्तुएं ही नहीं होंगी, तो फैक्ट्री चलेगी कैसे ? हमारा 3000 कोच के वार्षिक उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करना अब एक मज़ाक बनकर रह गया है। उन्होंने आगे कहा, "प्रशासन की यह निष्क्रियता न केवल उत्पादन को पटरी से उतार रही है, बल्कि हमारे मेहनतकश कर्मचारियों के मनोबल को भी कुचल रही है। क्या प्रशासन जानबूझकर फैक्ट्री को वित्तीय संकट में धकेल रहा है ताकि निजीकरण की राह आसान हो सके ?
यूनियन ने आरसीएफ प्रशासन पर यह गंभीर आरोप लगाया है कि यह स्थिति केवल 'लापरवाही' नहीं, बल्कि 'उदासीनता' की पराकाष्ठा है। यह समझ से परे है कि एक प्रतिष्ठित सरकारी इकाई, जिसकी देश के परिवहन क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका है, ऐसी बुनियादी समस्याओं से क्यों जूझ रही है। यूनियन ने चेतावनी दी है कि यदि इस 'सामग्री के अकाल' को तत्काल समाप्त नहीं किया गया, तो कर्मचारियों को मिलने वाले प्रोत्साहन भत्तों में कटौती होगी, जिससे हजारों परिवारों पर सीधा आर्थिक बोझ पड़ेगा।
RCFEU ने प्रशासन से दो टूक शब्दों में कहा है कि 3000 कोच के वार्षिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए तुरंत युद्धस्तर पर आवश्यक सामग्रियों का प्रबंध किया जाए। यूनियन का मानना है कि यह स्थिति न केवल आरसीएफ की छवि को धूमिल कर रही है, बल्कि भारतीय रेलवे की आत्मनिर्भरता पर भी एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा रही है।
यह समय है कि प्रशासन 'जागे' और कर्मचारियों की आवाज़ सुने। यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो आरसीएफ एम्पलाइज यूनियन अपने कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है!
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